देवों के देव
हर हर महा देव...
जिनका ना कोई आरंभ या अंत
है वो ऐसे नील कंठ संत।
व्यापक हैं हर कण कण वो
जागृत रहे हों, या रहे हो सो।
शक्ति, मुक्ति, शुद्धि की दिखायें राह
यदि भीतर हो आप में चाह।
ध्यान में रहते मगन
धरती पूजती उन्हें, पूजती गगन।
ताण्डव करके बुराई करते नष्ट
कृपा जब बरसती उनकी,
न होता किसी को कोई कष्ट।
पंच तत्वों के स्वामी हैं आप
इनकी रक्षा में ही है आपका जाप।
महाज्ञानि दयावान प्रभु महान
आपकी सेवा करते हर इंसान।
हर छण करे जो प्रभु का जाप
मिट जाए जन्मो के पाप।
सृष्टि सिंह
Comments