शुन्य ... 


क्या तुमने शुन्य को सुना है 

वो  जो कुछ  अनसुनी आवाज़ों  ने बुना है?

शोर गुल में एक सन्नाटा... 

कहीं दूर से आता 

शुन्य की एक आवाज़ 

जिसमे न राग है , न कोई  साज़ । 

जो पड़ती  कानो पर कोलाहल के बीच 

साजक्ता को ले  अपनी तरफ खींच 

ढोल नगाडे को चीर 

वह एक शुन्य की आवाज़ 

जमघट में भी नहीं होती नज़रअंदाज़। 

इतनी  धीमी और  मधुर

है उसका अनसुना सुर। 

शायद है ब्राह्मण से जुडी 

अनगिनत समय से  गूंजती। 

महक जाता जैसे कस्तूरी से वन 

सुगन्धित करती शून्यता,

पवित्र करती मन। 


क्या तुमने उस शुन्य को सुना है ?


सृष्टि  सिंह 









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