पुनः पुनः
पुनः पुनः
"सीया, क्या फिर अग्नि परीक्षा जाओगी
किसी रावण में मन को यदि लुभाओगी
धरती में फिर क्या समा जाना पड़ेगा
प्रजा का यदि पड़ा थपेड़ा
बिरहा की नदीया फिर से क्या बहाओगी
रानी होकर क्या बैरागी कहलाओगी
जनक दुलारी, सुनैना की आखों का तारा
जिसने जीता राम का ह्रदय प्यारा
वीर लव कुश की माता तुम कहलाती
त्याग राज महल, वन मे जाती
सीया क्या लक्ष्मण रेखा करोगी पार
या भिक्षु को देख मान लोगी हार
क्या तिनका फिर से बनेगी तुम्हारी तलवार?"
" संग हुआ यदि नारायण का स्वरुप
चाहे छाव हो या धूप
सत्य का देने साथ
पृथ्वी से करने दुष्ट का विनाश
यह दिव्य खेल खेलने
पुनः पुनः
सीता होगी तैयार।"
shristee singh
Pic courtesy : Jamini Roy
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