काल चक्र

काल चक्र ऐसे गया घूम

मच गयी  चारों तरफ धूम।
नाचता  आया मेरी ओर 
मचाता  प्रलय घनघोर ।

क्या मुझे वह खा जाएगा?
अस्तित्व इसमें मेरा समा जाएगा?
या रहेगा मुझसे परे...
देखती रही मैं खड़े खड़े।

काल चक्र रहा घूमता
ब्रह्माण्ड को चूमता।
काँप रहा था अम्बर
लग रहा था सबको डर।

छू न पाया मुझे एक भी पल
न देख पाया मुझमें कोई छल।

एक तिनका भी न हिला पाया
जहां था हरि का साया।


सृष्टि सिंह



pic courtsey: google




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