पवन 

पवन ऐसी  बहे  मेरे द्वार,
लेकर  आये  खुशियाँ आपार। 
पूर्व, पश्चिम, उत्तर या हो दक्षिण दिशा,
लेकर आये  सुनहरे दिन, भीनी निशा। 

जब चले  चाल मस्तानी,
झूमे सारे , छोड़ कर ग्लानि । 
आये  जब गुर्राती वो,
जागे जग मै, जो रहे हो सो। 

इठलाती, झूमती रहती घूमती,
थल और गगन को चूमती। 
जहाँ मिले पुष्प, सुगन्धित करती संसार,
झूमती सृष्टि सारी, संग तेरे बारम्बार। 

न दिखे कभी, पर दिलाती एहसास, 
भेद न करे किसी से, जाती सबके पास। 
झंकृत करे जो ह्रदय के तार,
पवन ऐसी बहे मेरे द्वार। 

सृष्टी सिंह


pic courtesy: Bundo Kim




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