जय श्री राम






जय श्री राम

ऐसं कैसी दुविधा  यी आयी
काम दिये रहेंन  इक  रघुराई,
जात रहे खोजे सब  सीता माई
देख समुन्दर बुद्धी गयी चकराई।

कैसन्न करी अब हम इहीके पार
सीता मैया को पहुँचाई प्रभु का तार
समुन्दर रही अति बिसाल,
देख ओहका, बानर सेना हुई निढाल।

भूल गएन पवन पुत्र आपन गुन सारे
बैठन उदास, कइसे जाए समुद्र पारे।
जावंत याद तब दिलायें, सक्ती  छुपी भीतर बिसाल,
हनुमंत तब लीनहि ईक छलाँग, कर दिन्ही कमाल।

यदि मन कबहुं  घबरवाए, एकिरा रखा याद,
नाम रघुबीर का धारण करा जैसन्न प्रसाद।
सक्ती  भीतर से निकरे अपन आप,
पूरण होईहे सारे काज, जब करेन प्रभु का जाप।


सृष्टि सिंह

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