Hindi Poems
राहे
राहे तो हैं बहुत
पर है मुझे एक ही प्यारा।
गुजरे जहाँ से हों साँवरे,
नटखट, नंद के लाला।
जहां बिखरे हो कदम्ब के फूल
पड़े जिधर हों कान्हा के चरण।
उसी मिट्टी पर, छू कर वही धूल,
राह वही चलूँ,
बिना करे कोई भूल।
सृष्टि सिंह
#Day1 #10dayspoetryandprosechallenge
यादें
लहर बन कर कभी आतीं,
कभी बन जातीं हैं भँवर
यादों के पीछे जब,
आता कुछ कुछ नज़र।
टीमटिमा जाती आँखे
बहते झरने सुबह शाम
बस, याद आने की होती देर
लूट लेती मन का आराम।
हैं तो बड़ी प्यारी
वो यादें...
छोटी-मोटी बातों की
और कुछ पुराने वायदे की।
पर यादें ...कयूँ मुझे सताती हो,
ऐसे क्यूँ रुलाती हो,
यादें, जो हैं मेरी अपनी, मेरी प्यारी
अतीत को जोड़ती मेरे आज से,
मेरी भूली बिसरी सखी, मेरी दुलारी।
सृष्टि सिंह
#10dayspoetryandprosechallenge #day3 #moon #चाँद
चाँद तेरी चाँदनियाँ
चाँद तेरी चाँदनियाँ,
इतना मुझे क्यूँ लुभाती।
बादलों से लुका छुपी खेल कर,
मेरे आँगन जब आती।
छलक कर गिरती जब यमुना की लहरों में,
लेकर हज़ारों टिमटिमाते तारे साथ,
वृंदावन में लाती ख़ुशियों की बारात।
मगन होकर झूम उठते वहाँ के सारे वासी।
चाँद तेरी चाँदनियाँ, मिटाती सबकी उदासी।
तेरी चाँदनी में किया होगा कान्हा ने भी स्नान,
शीतल किरणो में तेरी, गाए होंगे अनोखे गान।
यमुना के तीर, बजी होगी बंसी मधुर,
गायीं होंगी गोपियाँ, कोई अदभुत सुर।
चाँद आने न दे मुझमें कोई सवाल,
वही शीतल किरण तू अब मुझ पर भी डाल।
चाँद तेरी चाँदनियाँ...
है साँवरे की याद दिलाती।
इसीलिए तू मुझे भाती
इसीलिए तू मुझे लुभाती।
@सृष्टि सिंह
#10dayspoetryandprosechallenge
सुबह
थोड़ा व्ययाम,
छोड़ कर आराम,
मुद्रा योगा के कुछ,
छुड़ा दे जो बुद्धि तुच्छ।
चिड़ियों की चहक से,
फूलों की महक से,
जिह्वा पर हो प्रभु
ऐसे सबकी हो सुबह शुरू।
सृष्टि सिंह
#10dayspoetryandprosechallenge
#day5#rose
पंखुडिया गुलाब की खिल गयीं
खुशबू गुलाबी हवा में मिल गयी।
माटी पर जा गिरा जब वह फूल,
वीर सैनानी की जहाँ पड़ी थी धुल।
सृष्टि सिंह
#10 DaysPoetry andProse Challenge
# Day 6
#विषय - अनुराग
अनुराग
पृथ्वी खोजती वह सुराग,
जिससे फैले हर दिशा अनुराग।
सूरज, चाँद और हैं तारे अनेक,
पर धरती माँ तो है सिर्फ एक।
दिया जिसने सबको जीवन दान
धन दौलत, खान पान।
रहते क्यों द्वेष में पृथ्वी वासी,
फैलाते हर तरफ उदासी ?
पुकारे माँ बार बार...
छोड़ अब राग द्वेष के द्वार।
फैलाओ अनुराग चारो ओर ,
मचे सिर्फ खुशियो का शोर।
सृष्टि सिंह
#Day7
नमो शारदा
कर हंस की सवारी
वीणा हाथो में तान
आयी माँ शारदा
बाटने ज्ञान।
लेकर ऋतू बसंत साथ
मिटाने अंधकार,
शुक्ल वर्ण देवी,
कुन्द पुष्प, स्फटिक माला,
पुस्तक लेकर हाथ।
खिल उठी बगिया सारी
खिल गया संसार,
दूर हुए जैसे ही जड़ता और अज्ञान।
हर तरफ घुला मधुर गीत,
माँ शारदा का जब मिला वरदान।
सृष्टि सिंह
#ALS
#10dayspoetryandprosechallenge
#day8
#नारी
नारी
इतनी सूंदर छवि तुम्हारी
हर रूप में लगती नयारी
तुम दुर्गा, क्षमा, स्वधा, सरवती
आगे बढ़ती, लेकर अपनी गति।
राह फूल बिछे हो या हो अंगारे
कमल की तरह खिलती ,
महकती जैसे बहारें।
हर तूफ़ान पार करती मुस्कुराते
दामन में भर कर अनेको तारे।
लेकर सुनहरे कल की उम्मीद,
आखों में प्यार का दीद
छलकती प्यारी।
नारी
इतनी सूंदर छवि तुम्हारी
हर ररूप में लगती नयारी।
सृष्टि सिंह
#AsianLiterarySociety
#Day9 #Desire #अभिलाषा
गूंजे वह संगीत हर दिशा ,
जिसमे हो एकता की भाषा
ऐसी मेरी अभिलाषा।
सुबह लाये संग अलौकिक आशा
लेकर नूतन उमीदों की तरंग,
ह्रदय में न हो किसी को कोई निराशा
ऐसी मेरी अभिलाषा।
सृष्टि सिंह
#AsianLiterarySociety
#समय #Time #Day10
समय
बहने दो समय को
पानी की तरह,
जाने दो समय को
कहानी की तरह।
न रुके , न झुके
बहती अनंत काल से
एक धारा ऐसी।
न पता
आयी कहाँ से
होगी कहाँ खत्म।
इसलिए जियो हर समय
ऐसे जैसे
जीत लिए हो इसे हम।
सृष्टि सिंह
Comments