हमारी भारती
वो भारती जो बोलते हम रात दिन,
जाने कहाँ गुम होते जा रहे उसके चिन्ह।
देख अपनी भाषा की गरिमा खो,
सिसकीया लेकर रही, भारत माता रो।
है जिसकी लिपि में ख़ज़ाने अनेक,
राह दिखाए सदियों से, ग्रन्थों के लेख।
रही न किसी को उसमें रुचि अब,
खोने लगी भाषा मेरी, न जाने कब।
ऋषि संतो की पवित्र स्याही से उजागर,
भाषा जो बोली जाती, घर घर।
शंख नाद के साथ घुले आसमाँ में जैसे आरती,
फिर से हर कण में गूँजे हमारी भारती।
सृष्टि सिंह
वो भारती जो बोलते हम रात दिन,
जाने कहाँ गुम होते जा रहे उसके चिन्ह।
देख अपनी भाषा की गरिमा खो,
सिसकीया लेकर रही, भारत माता रो।
है जिसकी लिपि में ख़ज़ाने अनेक,
राह दिखाए सदियों से, ग्रन्थों के लेख।
रही न किसी को उसमें रुचि अब,
खोने लगी भाषा मेरी, न जाने कब।
ऋषि संतो की पवित्र स्याही से उजागर,
भाषा जो बोली जाती, घर घर।
शंख नाद के साथ घुले आसमाँ में जैसे आरती,
फिर से हर कण में गूँजे हमारी भारती।
सृष्टि सिंह
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