राहें






राहे
राहे तो हैं बहुत
पर है मुझे एक ही प्यारा
गुजरे जहाँ से हों साँवरे,
नटखट, नंद के लाला।
जहां बिखरे हो कदम्ब के फूल
पड़े जिधर हों कान्हा के चरण।
उसी मिट्टी पर, छू कर वही धूल,
राह वही चलूँ,
बिना करे कोई भूल।

 

सृष्टि सिंह

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