चाँद तेरी चाँदनियाँ,
इतना मुझे क्यूँ लुभाती।
बादलों से लुका छुपी खेल कर,
मेरे आँगन जब आती।
छलक कर गिरती जब यमुना की लहरों में,
लेकर हज़ारों टिमटिमाते तारे साथ,
वृंदावन में लाती ख़ुशियों की बारात।
मगन होकर झूम उठते वहाँ के सारे वासी,
चाँद तेरी चाँदनियाँ, मिटाती सबकी उदासी।
चाँदनी में तेरी, किया होगा कान्हा ने भी स्नान,
शीतल किरणो में, गाए होंगे अनोखे गान।
यमुना के तीर, बजी होगी बंसी मधुर,
गायीं होंगी गोपियाँ, कई अदभुत सुर।
आने न दे मुझमें अब कोई सवाल,
वही शीतल किरण मुझ पर भी डाल।
चाँद तेरी चाँदनियाँ...
है साँवरे की याद दिलाती।
इसीलिए तू मुझे भाती
इसीलिए मुझे लुभाती।
सृष्टि सिंह
#AsianLiterarySociety
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